भाग : 17 मैंने पहाड़ों की ओर देखा, सारा आकाश जैसे पहाड़ों के कांधे पर बैठा था और पहाड़ चाँद की रोशनी में किसी जादू सा दिख रहा था। रात के तकरीबन ढाई बजे होंगे, बहुत देर तक सोने के असफल प्रयास के बाद मैं कमरे से बाहर निकल आया। बाहर निकलते ही और अधिक ठंड लगने लगी थी। पहाड़ों की ठंडी देख लगता, ठंड राजाओं का मौषम है। गर्मी में तो एक उबाऊ होती है, फिर भी आप अपना काम कर लेते है पर सर्दी में बस आप आग के पास बैठे रहना पसंद करते है। बात करते रहना पसंद करते है, और कुछ भी करने के बजाए आपको आराम ज्यादा प्रिय लगती है। पूरा दिन गर्म पानी और चाय पीते रहो और बस उंगलियां बाहर निकाल लेखन का मजा लेते रहो। तो शायद इस कारण भी नींद नहीं आ रही थी कि कल सुबह मुझे इस जगह को छोड़ देना है। मैं कम्बल में खुद को जकड़े हुए यह भी सोच रहा था कि इस सपनों की नगरी से वापस आखिर क्यों जाना! रात की अपनी खूबसूरती होती है, और रात पहाड़ों के लिए सृंगार जैसे है, रात के आने से पहाड़ों की खूबसूरती बढ़ जाती है। और यही खूबसूरती मुझे यहाँ से बांध रही थी। पर हम जहां पैदा होते है, ताउम्र उस जगह की छाप हमपर पड़ी की पड़ी रह जाती है। ...